‘ दे लंका में आग ’ एक अनुपम तेवर-शतक
+विश्वप्रताप
भारती
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तेवरीकार-रमेशराज, सार्थक-सृजन प्रकाशन, ईसानगर,
निकट-थाना सासनी गेट,
अलीगढ़ [उ.प्र.]
अलीगढ़ के बहुचर्चित कवि रमेशराज की तेवरी का संग्रह है-‘दे लंका में आग’ । यह एक लघु पुस्तिका है जिसमें एक लम्बी तेवरी है,
जिसे ‘तेवर-शतक’ नाम दिया गया है। इसके पूर्व उन्होंने ‘अभी जुबां कटी नहीं’, ‘कबीर जिन्दा है’, ‘इतिहास घायल है’, ‘एक प्रहारः लगातार’ तेवरी-संकलनों तथा तेवरीपक्ष त्रैमा. का संपादन किया है तथा
‘विचार
और रस’, ‘विरोधरस’,
‘राष्ट्रीय बाल कविताएं’
नामक पुस्तकों के रचयिता हैं।
कवि रमेशराज में कर्तव्यबोध पूरा-पूरा पाया जाता है।
उन्होंने कविता को चुना है। समाज से जुड़कर लिखा है। कवि की घुटन,
वेदना,
सारे समाज की वेदना है। खासकर
पीडि़त समाज की। यही बात वह अपने समकालीन कवियों से भी कहते हैं। उनकी छटपटाहट एवं
पीड़ा का आत्मसंघर्ष उनके इस तेवरी-शतक में बखूबी दिखता है-
सिस्टम आदमखोर, जिन्दगी दूभर है,
कविता को हथियार बना तू लांगुरिया, गाल छर असुरों के |
असुरों के आगे विनती में हर स्वर है
क्रान्ति भरे फिर भाव जगा तू लांगुरिया, गाल छर असुरों के |
कवि रमेशराज के लिए कविता की साधना एक निरन्तर का आत्मसंघर्ष
है। अपनी कमजोरियों को जानकर कवि उत्साहित होता है। कवि का आत्मसंघर्ष सामान्य
व्यक्ति के संघर्ष की ओर संकेत करता है, जिसको करते हुए भी कुछ प्राप्त नहीं कर पा रहा है। पर वह इस
संघर्ष की सफलता देखना चाहता है। कवि कहता है-
मुझमें-तुझमें बस इतना ही अन्तर है
मैं माचिस, बारूद बना तू लांगुरिया, गाल छर असुरों के |
जल्लादों की छुरी हमारे सर पर है
बड़े बुरे हैं हाल, बचा तू लांगुरिया, गाल छर असुरों के |
कवि ने राजनीतिक लक्ष्य भी इस तेवरी-शतक में कलात्मक ढंग से
रूपायित किया है-
डाका अबकी बार हमारे हक पर है
दिल्ली को यह बात बता तू लांगुरिया, गाल छर असुरों के |
देश लूटता धनिक, सांसद, अफसर है
अब भारी आक्रोश जता तू लांगुरिया, गाल छर असुरों के |
रमेशजी की शैली में शब्दचित्र खींचने की अनोखी शक्ति दिखाई
देती है। इसके माध्यम से उन्होंने भावों और विचारों को मूर्त्तरूप प्रदान किया है।
पढ़ते समय नेत्रों के सामने घटना घटित होती-सी दिखाई ढेती है। जैसे-
बस चीखों को लादे गया दिसम्बर है,
नया साल खुशहाल बना तू लांगुरिया, गाल छर असुरों के |
धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर देश को बांटने वालों से सावधान करना,
भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकना
रमेशराज की तेवरियों का मुख्य स्वर है। सभी तेवर संदेश देते हैं एवं हर दृष्टि से
उपदेशक हैं-
वो जीतेगा जिसकी चोट निरंतर है
वही पुराने हाथ दिखा तू लांगुरिया, गाल छर असुरों के |
सही चोट करने का ये ही अवसर है
घन को भरकर जोश उठा तू लांगुरिया, गाल छर असुरों के |
हिन्दी काव्य जगत की नई विधा ‘तेवरी’ तेवरीकार रमेशराज के संघर्ष से आगे बढ़ रही है लेकिन अभी
तेवरी संग्रहों की संख्या कम है। यदि राष्ट्रीय स्तर पर तेवरीकारों को इकट्ठा कर
संकलन प्रकाशित किये जाएं तो इस दिशा में एक अच्छा प्रयास होगा एवं तेवरी हिन्दी
काव्य की मान्य विधा के रूप में स्थापित हो सकेगी।
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विश्वप्रताप भारती, बरला,अलीगढ़ [ उ.प्र.]-202129
मोबा. 8445193301
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