तेवरी संग्रह " घड़ा पाप का भर रहा " अद्भुत कृति
+विश्वप्रताप
भारती
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रमेशराज
छन्दबद्ध कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं | रस के क्षेत्र में “ विचार और रस “, “
विरोधरस “ नामक दो पुस्तकों के माध्यम से रस के क्षेत्र में जहाँ आपने रस को
व्यापकता प्रदान की है , वर्तमान विचारशील कविता को रस से जोड़ा है | वहीं ग़ज़ल से
रोमानी पक्ष से व्यवस्था विरोध के तेवर को अलग कर उसे तेवरी के रूप में स्थापित
किया है तथा हिंदी साहित्य में तेवरी के
विधागत वैचारिक विमर्श को आगे बढ़ाया है |
रमेशराज ने तेवरी विधा को पहचान और स्थायित्व
प्रदान करने के लिए “ तेवरीपक्ष ” पत्रिका के साथ साथ “ अभी जुबां कटी नही “,
“कबीर ज़िन्दा है “, “इतिहास घायल है ” जैसे कई तेवरी संग्रहों का सम्पादन किया |
हिंदी की प्रगतिशील जनवादी कविता में जिला अलीगढ से बहुत से नाम आगे आते हैं
, उनमें रमेशराज शीर्षस्थ हैं | ये कहना
गलत न होगा कि आलोचकों ने उनकी पुस्तकों को तो पढ़ा किन्तु उनकी चर्चा करने से
कतराते रहे | उनकी इस चुप्पी के दौरान कुछ रचनाकारों ने तो तेवरी लिखने वालों को
“तेवरीबाज़ ” तक कह डाला |
श्री रमेशराज अपनी लम्बी तेवरी (तेवर शतक ) “घड़ा
पाप का भर रहा ” के माध्यम से एक बार फिर चर्चा में हैं |इस संग्रह की 100 से ऊपर
तेवरवाली तेवरी को पढकर हर एक सामाजिक यह महसूस कर सकता है – “अरे ये तो हमारे मन
की बात कह दी ” शायद तेवरीकार के लेखनकर्म की यही सफलता है |
सामान्यतया कविता दूसरों को कुछ बताने के लिए
लिखी जाती है जो मानवीयता के पक्ष की मुखर आवाज़ होती है | मानवीयता के स्तर पर कविता
में जो भाव आते हैं वे अद्भुत होते हैं | रमेशराज की कविता (तेवरी ) में ये भाव एक
बड़ी सीमा तक विद्यमान हैं –
तेरे भीतर आग है
, लड़ने के संकेत
बन्धु किसी पापी
के सम्मुख तीखेपन की मौत न हो |
++ ++ ++
जन जन की पीड़ा
हरे जो दे धवल प्रकाश
जो लाता सबको
खुशहाली उस चिन्तन की मौत न हो |
दरअसल आज आदमी की ज़िन्दगी इतनी बेबस और उदास हो
गयी है कि वह समय के साथ से , जीवन के हाथ से छूटता जा रहा है | सम्वेदनशून्य समाज
की स्थिति तेवरीकार रमेशराज को सर्वाधिक पीड़ित करती है –
कायर ने कुछ
सोचकर ली है भूल सुधार
डर पर पड़ते भारी
अब इस संशोधन की मौत न हो |
समाज में जो परिवर्तन या घटनाएँ हो रहीं हैं वे
किसी एक विषय पर केन्द्रित नहीं | घटनाओं के आकर प्रकारों में बीभत्सता परिलक्षित
हो रही है | इन घटनाओं के माध्यम से नई अपसंस्कृति जन्म ले रही है फलतः लूट ,
हत्या , चोरी , बलात्कार , घोटाले , नेताओं का भ्रटाचार , सरकारी कर्मचारियों की
रिश्वतखोरी अब चरम पर हैं| रमेशराज
के इस विद्रूप को उजागर करने और इससे
उबरने के प्रयास देखिये –
लोकपाल का
अस्त्र ले जो उतरा मैदान
करो दुआएं यारो
ऐसे रघुनन्दन की मौत न हो |
++ ++ ++
नया जाँचआयोग भी
जांच करेगा खाक
ये भी क्या देगा
गारन्टी कालेधन की मौत न हो |
कविता में भोगे हुए यथार्थ की लगातार चर्चा हुयी
है लेकिन उसके चित्रण तक | दलित लेखकों ने अपने लेखन में जहाँ समस्याओं को उजागर
किया है वहीं उनका समाधान भी बताया है | रमेशराज दलित नहीं हैं किन्तु उनका जन्म
एक विपन्न परिवार में हुआ , इस नाते दलितों के प्रति उनकी तेवरियों में वही पीड़ा
घनीभूत है, जो दलित लेखकों के लेखन में दृष्टिगोचर हो रही है |
निस्संदेह आज दलितों ने निरंतर प्रयास से अपना
जीवन-स्तर बदला है | अपने लिए अनंत सम्भावनाओं का आकाश तैयार किया है | किन्तु
समाज में अभी भी कुछ ऐसा है जिससे तेवरीकार आहत है-
पूंजीपति के हित
यहाँ साध रही सरकार
निर्बल दलित भूख
से पीड़ित अति निर्धन की मौत न हो |
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लिया उसे पत्नी
बना जिसका पिता दबंग
सारी बस्ती
आशंकित है अब हरिजन की मौत न हो |
तेवरीकार ने आज़ादी की लड़ाई का चित्रण उन दोगले
चरित्रों को उजागर करते हुए किया है, जिन्होंने आजादी के दीवानों की पीठ में छुरे
घोंपे-
झाँसी की रानी
लिए जब निकली तलवार
कुछ पिठ्ठू तब
सोच रहे थे “ प्रभु लन्दन की मौत न हो” |
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यास ‘गोदान’
के पात्र ‘गोबर्धन’ के माध्यम से युवा
आक्रोश को इस प्रकार व्यक्त किया है-
झिंगुरी दातादीन
को जो अब रहा पछाड़
‘होरी’ के
गुस्सैले बेटे ‘गोबरधन’ की मौत न हो |
हिंदी साहित्य में नये-नये प्रयोग होते रहे
हैं, आगे भी होते रहेंगे | कविता में “ तेवरी-प्रयोग “ एक सुखद अनुभव है जो
सामाजिक सन्दर्भों से गुजरते हुए समसामयिक युगबोध तक ले जाता है | तेवरी की भूमिका
कैसी है स्वयं तेवरीकार के शब्दों में अनुभव की जा सकती है-
इस कारण ही
तेवरी लिखने बैठे आज
किसी आँख से
बहें न आंसू , किसी सपन की मौत न हो |
स्पष्ट है, तेवरी नयी सोच, नयी रौशनी लेकर आयी
है | अन्य तेवरी शतकों की तरह ‘ घड़ा पाप का भर रहा ‘ की लम्बी तेवरी आँखें खोलने
वाली है | आशा है, हिंदी साहित्य के लेखक तेवरी को स्वीकारने, संवारने में
हिचकेंगे नहीं |
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+विश्वप्रताप
भारती , बरला, अलीगढ़
मोबा.-8445193301
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